Ratnakar Jha: A Freedom fighter of Chhattisgarh

Ratnakar Jha: A Freedom fighter of Chhattisgarh

रत्नाकर झा (Ratnakar Jha) का जन्म नवंबर 1896 में मंडला जिले की अंजनिया में हुआ था। उनके पिता का नाम श्री प्रीतिकर झा और माता का नाम श्रीमती पार्वती बाई था। उनके पिता की मृत्यु के कारण उन्होंने अपने ताऊ पंडित चतुर्भुज झा के साथ मंडला और नाना के पास खैरागढ़ में अध्ययन किया। उन्होंने विधि में अपनी पढ़ाई पूरी की और उसके बाद रायगढ़ आए और वकालत की शुरुआत की।

सन् 1922 में, रत्नाकर झा ने असहयोग आंदोलन के दौरान अपने विदेशी सूट को आग लगाकर राष्ट्रभक्ति का संकेत दिया। 1930 में, सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत के बाद, उन्होंने दुर्ग जिले में आंदोलन और जुलूस आयोजित किए। इस दौरान, बालोद में जंगल सत्याग्रह भी हुआ।

21 सितंबर 1930 को, रत्नाकर झा को बालोद में सरकारी कानून के खिलाफ भाषण देने के आरोप में धारा 107 के तहत गिरफ्तार कर बंदी बनाया गया। उन्हें बालोद न्यायालय में मुकदमा चलाय

ा गया और उन्हें एक वर्ष की कठोर कारावास की सजा सुनाई गई।

सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान के दूसरे चरण में, रत्नाकर झा, घनश्याम सिंह गुप्ता, वी.वाय. ताम्रस्कर, नरसिंह अग्रवाल और अन्य नेताओं ने विदेशी वस्त्र और अन्य विदेशी वस्तुएं बेचने से इनकार किया और व्यापारियों को अपील की। हालांकि, कुछ व्यापारियों ने इस अपील को नजरअंदाज किया, जिसके कारण रत्नाकर झा और अन्य नेताओं ने पिकेटिंग का आयोजन किया।

नवंबर 1933 में, महात्मा गांधी ने दुर्ग का दौरा किया। उसी साल, दुर्ग जिला हरिजन सेवक संघ की स्थापना हुई, जिसमें रत्नाकर झा को उपाध्यक्ष बनाया गया। 1937 में, उन्हें दुर्ग नगर पालिका परिषद् के अध्यक्ष निर्वाचित किया गया। रत्नाकर झा ने दुर्ग में व्यक्तिगत सत्याग्रह आरंभ किया, जिसके कारण उन्हें दंडित करार दिया गया और उन्हें 6 माह की कठोर कारावास की सजा मिली।

1942 में, 9 अगस्त को, दुर्ग में जुलूस निकला गया, जिसे पुलिस ने लाठियों से ध्वस्त कर दिया। दुर्ग में निरंतर जुलूस जारी रहा। रत्नाकर झा को अगस्त 1942 में गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें बिना मुकदमा चलाए जेल में बंद कर दिया गया। उन्हें 1944 में जेल से रिहा किया गया।

रत्नाकर झा का देहावसान 21 जून 1973 को हुआ।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

If the leaked information is indeed accurate, it is highly likely that the epic games store. This wooden church in copenhagen honors nature. These experiments were carried out in colleges, universities, hospitals, and prisons.